माना कि मानव शरीर में कोशिकाओं का विकास एक नियंत्रित प्रणाली के रूप में होता है लेकिन कुछ कोशिकाओं का एक ऐसा समूह होता है जो कि अनियंत्रित रूप से बढ़ता है और विकसित होता है। इन कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाएं कहते हैं। ये दो प्रकार की होती है जिन्हें बिनाइन ट्यूमर (Benign Tumour) और मेलिगनेन्ट ट्यूमर (Malignant Tumour) कहा जाता है। 

इस रोग में फेफड़ों के ऊतको में अनियंत्रित वृद्धि होने लगती है। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाय तो यह वृद्धि  विक्षेप कही जाने वाली प्रक्रिया से, फेफड़े से आगे नज़दीकी कोशिकाओं या शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है।
अधिकांश कैंसर जो फेफड़े में शुरु होते हैं और जिनको फेफड़े का प्राथमिक कैंसर कहा जाता है कार्सिनोमस होते हैं जो उपकलीय कोशिकाओं से निकलते हैं। 

मुख्य प्रकार के फेफड़े के कैंसर छोटी-कोशिका फेफड़ा कार्सिनोमा (एससीएलसी) हैं, जिनको ओट कोशिका कैंसर तथा गैर-छोटी-कोशिका फेफड़ा कार्सिनोमा भी कहा जाता है। सबसे आम लक्षणों में खांसी (खूनी खांसी शामिल), वज़न में कमी तथा सांस का फूंलना शामिल हैं।

क्या होता है कैंसर (What is Cancer)? 

बिनाइन ट्यूमर कैंसर रहित जबकि मेलिगनेन्ट ट्यूमर कैंसर वाला कहा जाता है। बिनाइन ट्यूमर कोशिकाओं की बढ़त बहुत धीमी होती है ये फैलती नहीं है। जबकि मेलिगनेंट ट्यूमर कोशिकायें तेजी के साथ बढ़ती हैं और अपने नजदीकी सामान्य ऊतकों (Tissues) को भी नष्ट करती है। 

ये संपूर्ण शरीर में फैल जाती हैं। जब मेलिगनेन्ट ट्यूमर मानवीय शरीर को प्रभावित करने लगता है और कैंसर कोशिकाओं को अन्य मानवीय ऊतकों (Tissues) में भेजने लगता है तो इस अवस्था को कैंसर (Cancer) कहा जाता है 

फेफड़ों का लार्ज सेल कैंसरलार्ज सेल कार्सिनोमा के नाम से भी जाना जाता है। लार्ज सेल कैंसर अक्सर फेफड़ों की बाहरी परत पर होता है। इसलिए इससे होने वाली समस्याएं फेफड़ों को प्रभावित करती हैं। अगर जल्द से जल्द इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह तेजी से अन्य अंगों में फैलना शुरू हो जाता है।

फेफड़ों का कैंसर के लक्षण (Lungs Cancer Symptoms)

  अंगुलियों और अंगूठों के सिरों का बढ़ जाना (डिजिटल क्लतबिंग)
·         आवाज का फटना
·         कुछ मामलों में निमोनिया होना
·         खांसी में खून का आना (हेमोप्टाइसिस),
·         थकान (कमजोरी) महसूस होना
·         निरंतर खांसी बने रहना,
·         वजन में कमी या भूख न लगना, निगलने में कठिनाई होना
·         विशेषकर नाखूनों के आसपास की त्वुचा का बढ़ना पैरानियोप्लावस्टिक फिनोमिना जैसे कि स्तनों में वृद्धि
·         शरीर की रासायनिक संरचना में असामान्यताएं होना
·         सांस लेने में कठिनाई या घरघराहट होना
·         सिर में दर्द या दौरा पड़ना, चेहरे, गर्दन या ऊपरी अंगों में सूजन आना
·         सीने, कंधे या बांह में दर्द रहना
·         हड्डियों में दर्द रहना

कारण (Reason)

·         कैंसर डीएनए को आनुवांशिक क्षति से विकसित होता है। यह आनुवांशिक क्षति कोशिका के सामान्य प्रकार्यों को प्रभावित करती है जिसमें कोशिका प्रसार, क्रमादेशित कोशिका मृत्यु (एपॉटॉसिस) तथा डीएनए मरम्मत शामिल है। जैसे जैसे क्षति एकत्रित होती जाती है, कैंसर का जोखिम बढ़ता जाता है।

·         फेफड़े के कैंसर का खतरा उन सब को हो सकता है जो धूम्रपान करते हैं। अगर आप सिगरेट, पाइप, बीड़ी व सिगार का धुंआ फेफड़े तक ना भी ले जाएं, तो भी इनसे गले व मुंह का कैंसर (Cancer) फैलने का खतरा होता है। धूम्रपान बंद करके इस खतरे को कम किया जा सकता है।

·         धूम्रपान करने वालों के आसपास मौजूद होते हैं या धुएं के वातावरण में काम करते हैं, उन्हें भी फेफड़े के कैंसर का खतरा है। इसका सबसे ज्यादा डर छोटे बच्चों को होता है।

·         एस्बेस्टस (Asbestos), यूरेनियम (Uranium) , आर्सेनिक (Arsenic) व पेट्रोल (Petrol) की रिफाइनरी या कारखाने में काम करते हैं।

·         जिन्हें ट्यूबरक्यूलोसिस (Tuberclosis) हो, उन्हें भी इसका खतरा रहता है। इसके अलावा रेडिओ एक्टिव गैस रेडॉन की वजह से भी फेफड़े का कैंसर होता है।

रोगजनन (Pathogenesis)

दूसरे कई कैंसरों के समान, फेफड़े का कैंसर ऑन्कोजीन के सक्रियण या ट्यूमर शमन जीन के निष्क्रियण से शुरु होते हैं। ऑन्कोजीन के कारण लोग कैंसर के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाते हैं। 

प्रोटो-ऑन्कोजीन जब किसी विशेष कार्सियो जीन्स से अनावृत्त होती हैं तो वे ऑन्कोजीन में परिवर्तित हो जाती हैं। K-ras प्रोटो-ऑन्कोजीन में उत्परिवर्तन फेफड़े के एडिनोकार्सिनोमोसिस के 10–30% के लिए जिम्मेदार है।

अधिचर्मक वृद्धि कारक रिसेप्टर (ईजीएफआर) कोशिकीय प्रसारएपॉप्टॉसिसएंजियोजेनेसिस और ट्यूमर आक्रमण को नियमित करता है। गैर-छोटी कोशिका फेफड़े के कैंसर में ईजीएफआर के उत्परिवर्तन और प्रवर्धन आम हैं और ईजीएफआर-अवरोधकों के साथ उपचार का आधार प्रदान करता है। 

Her2/neu कम बार प्रभावित होता है। गुणसूत्रीय क्षति हेटरोज़ाइगोसिटी की हानि पैदा कर सकती है। इससे ट्यूमर शमन जीन का निष्क्रियण हो सकता है। छोटी-कोशिका फेफड़े के कार्सिनोमा में गुणसूत्र 3p, 5q, 13q और 17p विशेष रूप से आम हैं। 

गुणसूत्र 17p पर स्थित p53 ट्यूमर शमन जीन 60-75% मामलों में प्रभावित होते हैं। अन्य जीन जो अक्सर उत्परिवर्तित व प्रवर्धित होते हैं वे c-METNKX2-1,LKB1PIK3CA और BRAF हैं।

निदान (Diagnosis)

यदि कोई व्यक्ति ऐसे लक्षण रिपोर्ट करता है जो फेफड़े के कैंसर का इशारा करें तो पहला परीक्षण चरण सीने का रेडियोग्राफ करना है। यह एक स्पष्ट द्रव्यमान मध्यस्थानिका का विस्तार (लिंफनोड के विस्तार को दर्शाती)श्वासरोध (निपात), जमाव (निमोनिया) या फुफ्फुसीय बहाव को दिखा सकता है। 

सीटी इमेजिंग आम तौर से, रोग के प्रकार और हद के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करने के लिए किया जाता है। ब्रॉन्कोस्कोपी या सीटी-निर्देशित बायप्सी को अक्सर हिस्टोपैथोलॉजी के लिए ट्यूमर के नमूने के लिए किया जाता हैं।

सीने के रेडियोग्राफ में कैंसर एक एकल फेफड़ा गांठ के रूप में दिख सकता है। हालांकि विभेदक निदान विस्तृत है। कई अन्य भी ऐसे रोग हैं जो ऐसे ही लगते हैं जिनमें तपेदिक, फंगल संक्रमण, मेटास्टेटिक कैंसर या अनसुलझा निमोनिया शामिल है। 

एकल फेफड़ा गांठ के कम आम कारणों में हमरटोमाब्रॉन्कोजेनिक सिस्टएडीनोमाआर्ट्रियोवेनस मैलफंक्शनफेफड़े का सीक्वेस्ट्रेशनरुमेटी गांठवेगनर्स ग्रैन्यूलोमेटोसिस या लिम्फोमा शामिल है। फेफड़े का कैंसर एक प्रासंगिक खोज हो सकती है क्योंकि किसी असंबद्ध कारण से भी सीने के रेडियोग्राफ या सीटी स्कैन को किये जाने पर कोई एकल फेफड़े की गांठ मिल सकती है। 

फेफड़े के कैंसर का निश्चित निदान, चिकित्सीय तथा रेडियोलॉजिकल गुणों के संदर्भ में संदेहास्पद ऊतकों के ऊतकीय परीक्षण से होता है।

रोकथाम (Prevention)

रोकथाम, फेफड़ा कैंसर विकास को घटाने का सबसे लागत प्रभावी उपाय है। जबकि अधिकांश देशों में औद्योगिक तथा स्थानीय कार्सिनोजेन पहचाने व प्रतिबंधित किए जा चुके हैं, तंबाकू का धूम्रपान अभी भी काफी फैला हुआ है। तंबाकू का धूम्रपान समाप्त करना फेफड़े के कैंसर की रोकथाम का प्राथमिक लक्ष्य है तथा धूम्रपान समाप्त करना इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हथियार है।

सार्वजनिक स्थलों जैसे रेस्टोरेंट तथा काम करने की जगहों आदि में अप्रत्यक्ष धूम्रपान कम करने से संबंधित नीतिगत हस्तक्षेप, कई पश्चिमी देशों में अधिक आम हो गया है भूटान 2005 से पूर्णतः धूम्रपान निषेध देश है जबकि भारत ने अक्टूबर 2008 से सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान प्रतिबंधित किया है 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सरकारों से तंबाकू के विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है जिससे कि युवा लोगों को धूम्रपान की लत से बचाया जा सके। उनका आंकलन है कि ऐसे प्रतिबंध जहां पर लगाए जाते हैं वहां पर 16 प्रतिशत तक तंबाकू की खपत में कमी आती है।

पूरक विटामिन A विटामिन C, विटामिन D या विटामिन E का दीर्घावधि उपयोग फेफड़े का जोखिम कम नहीं करता है। कुछ अध्ययन यह सुझाव देते हैं कि वे लोग जिनके भोजन में सब्ज़ियों और फलों की मात्रा अधिक होती है उनमें जोखिम कम होता है, लेकिन यह भ्रम भी हो सकता है। अधिक कठोर अध्ययन स्पष्ट संबंध का प्रदर्शन नहीं करते हैं।

इतिहास (History)

फेफड़े का कैंसर, सिगरेट पीना शुरु करने के पहले आम नहीं था; 1761 तक इसे एक विशिष्ट रोग के रूप में मान्यता नहीं दी गयी थी। 

फेफड़े का कैंसर के विभिन्न पहलुओं को 1810 में बताया गया था फेफड़े के घातक ट्यूमर, 1 प्रतिशत कैंसर का निर्माण करते थे तथा उनको ऑटोप्सी में 1878 में देखा गया, लेकिन 1900 की शुरुआत तक वे 10-15 प्रतिशत तक बढ़ गए थे। 1912 के चिकित्सीय साहित्य में पूरी दुनिया में ऐसे मामले मात्र 374 रिपोर्ट किए गए, लेकिन ऑटोप्सी का समीक्षाओं ने दर्शाया कि फेफड़े के कैंसर 1852 में 0.3% से बढ़ कर 1952 में 5.66% हो गए। 

जर्मनी में 1929 में चिकित्सक फ्रिट्ज़ लिकिंट ने धूम्रपान तथा फेफड़े के कैंसर के बीच की कड़ी को मान्यता प्रदान की, जिसके कारण आक्रामक धूम्रपान विरोधी अभियानचलाया गया। ब्रिटिश चिकित्सा अध्ययन जो 1950 में प्रकाशित हुआ, वह पहला ठोस रोज जनक विज्ञानी साक्ष्य था जो फेफड़े के कैंसर और धूम्रपान की कड़ी के स्थापित कर रहा था।  

जिके परिणामस्वरूप 1964 में यूनाइटेड स्टेट्स के सर्जन जनरल ने अनुशंसा की कि घूम्रपान करने वालों को धूम्रपान करना छोड़ देना चाहिए।